Wednesday, May 6, 2009

सामान और रिश्ता

पुराने सामान का टूट जाना ही अच्छा,
वर्ना बोझ बन जाता है सामान
पुराना बदरंग 

याद आती है माँ 
और उसकी सामान को जतन करने की आदत 
हर तीसरे साल तबादले के वक़्त 
पिता जी की दांत खाती माँ 
सिर्फ पुराने सामान के बोझ के लिए 

बड़े बंगलो में सामान
बिना इस्तेमाल के धूल खाते
क्योंकि बंगलो के वारिस तो गए
बड़े शहरों के छोटे फ्लैट में 
जन्हाँ न तो पुराने सामान को रखने की जगह है
न ही उसकी कद्र

नई दुनिया में अब रिश्ते भी हो गए हैं 
सामान जैसे 
न उनकी जगह न ही जरूरत 
सिर्फ वक्ती जरूरत के हिसाब से ख़रीदे जातें हैं वे 
और टिकाऊपन  तो अब मुद्दा ही नहीं रहा 

पुराने सामान और रिश्ते 
कितने एक जैसे हो गए हैं
न उनकी कीमत न ही हैसियत 
बस कुछ है तो सिर्फ 
वक्ती जरूरत 

--उत्कर्ष